Tuesday, October 16, 2018

Aditya Hridaya Stotra in Sanskrit

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ततो युद्धपरिश्रान्तम् समरे चिन्तया स्थितम । 
रावणम् चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम ॥ 1
दैवतैश्च समागम्य दृष्टुमभ्यागतो रणम । 
उपागम्या ब्रवीद्राम-मगस्तयो भगवान् ऋषिः ॥ 2 



1,2 उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया । यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले ।



राम राम महाबाहो शृणु गुह्यम सनातनम । 
येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ 3 


3 सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो ! वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे । 

आदित्यहृदयम् पुण्यम सर्वशत्रु-विनाशनम । 
जयावहम् जपेन्नित्य-मक्षय्यम परमम् शिवम् ॥ 4 



सर्वमंगल-मांगलयम सर्वपाप प्रणाशनम् । 
चिंताशोक-प्रशमन-मायुरवर्धन-मुत्तमम् ॥ 5 


4,5 -  इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 'आदित्यहृदय' । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है । यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है । इससे सब पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है ।

रश्मिमन्तम समुद्यन्तम देवासुर-नमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तम भास्करम् भुवनेश्वरम् ॥ 6 



6 भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो। 

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मि-भावनः । 
एष देवासुरगणान् लोकान पाति गभस्तिभिः ॥ 7 



7 संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः । 
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपामपतिः ॥ 8 

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः । 
वायुर्वहनी: प्रजाप्राण ऋतु कर्ता प्रभाकरः ॥ 9 


8,9 ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान । 
सुवर्णसदृशो भानुर-हिरण्यरेता दिवाकरः ॥ 10 

हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्ति-मरीचिमान । 
तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान ॥ 11 

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः । 
अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान: ॥ 12 

व्योम नाथस्तमोभेदी ऋग्य जुस्सामपारगः । 
धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथिप्लवंगम: ॥ 13 

आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः । 
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भव: ॥ 14 

नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावनः । 
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते ॥ 15 

 10,11,12,13,14,15 इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व, सहस्रार्चि(हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है । Aditya Hridaya Stotra Hindi

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रए नमः । 
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।। 16 


16 पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है ।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः । 
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥ 17 


17 आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं । आपको बारबार नमस्कार है । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य ! आपको बारम्बार प्रणाम है । आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है ।

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः । 
नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः ॥ 18 


18 उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है । 

ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे । 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥ 19


19 आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है । 

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । 
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः ॥ 20 



20 आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

तप्तचामिकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे । 
नमस्तमोsभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे ॥ 21 



21 आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है ।

नाशयत्येष वै भूतम तदेव सृजति प्रभुः । 
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥ 22 


22 रघुनन्दन ! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं ।  

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः । 
एष एवाग्निहोत्रम् च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम ॥ 23 


23 ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं । 

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च । 
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः ॥  24 


24 देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।  


एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । 
कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥  25 


25 राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता । 

पूज्यस्वैन-मेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम । 
एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ 26 


26 इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे । 

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं वधिष्यसि । 
एवमुक्त्वा तदाsगस्त्यो जगाम च यथागतम् ॥ 27 


27 महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए । 

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोsभवत्तदा । 
धारयामास सुप्रितो राघवः प्रयतात्मवान ॥  28 

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम हर्षमवाप्तवान् । 
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान ॥  29 

रावणम प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत । 
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोsभवत् ॥  30 



28,29,30 उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया । उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे । उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया ।

अथ रवि-रवद-न्निरिक्ष्य रामम 
मुदितमनाः परमम् प्रहृष्यमाण: । 
निशिचरपति-संक्षयम् विदित्वा 
सुरगण-मध्यगतो वचस्त्वरेति ॥  31 


31 उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा - 'रघुनन्दन ! अब जल्दी करो' । 

॥ इति आदित्यहृदयम् मंत्रस्य ॥ 

इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है ।

Thursday, August 30, 2018

SANKASHTI GANESH CHATURTHI VRAT KATHA

चैत्र मासी गणेश चतुर्थी कथा 


सतयुग में एक मकरध्वज नाम का राजा था .वह अपनी प्रजा का पुत्रों जैसा पालन करता था उसके राज में प्रजा सभी प्रकार से सुखी थी .याज्ञवल्क्यजी की कृपा से राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई ,राजा ने अपने मंत्री धर्मपाल को राज्य का भार सौंपकर अपने पुत्र का पालन करने लगा मंत्री धर्मपाल के पांच पुत्र थे . उसने सभी लड़कों का विवाह कर दिया .उसके छोटे लड़के की बहू बहुत ही धर्म परायण थी .
चैत्र की चौथ को व्रत कर गणेश पूजन करने लगी .उसके व्रत को देख कर उसकी सास बोली –अरी ये क्या कर रही ?ये सब मत किया कर. वह सास के मना करने के बाद भी श्री गणेश का व्रत पूजन करती रही . सास उसे बहुत डराया धमकाया तो बहु ने बोला माताजी मैं संकटनाशी श्री गणेश व्रत कर रही हूँ .सास को बहुत गुस्सा आया और अपने छोटे बेटे से बोली-पुत्र तेरी स्त्री जादू-टोना करती है मना करने पर कहती है की गणेश व्रत पूजन करती है हम नहीं जानते की गणेश जी कौन हैं ? तुम इसकी खूब पिटाई करो ये तब मानेगी.
पर पति से मार खाने के बाद भी बड़ी पीड़ा और कठिनाई के साथ उसने श्री गणेश व्रत किया और प्रार्थना की- हे गणेश जी ! मेरे सास-ससुर के ह्रदय में अपनी भक्ति उत्पन्न करो . श्री गणेश जी ने राजकुमार को धर्मपाल के घर छिपा दिया बाद में उसके वस्त्र आभूषण उतार कर राजा के भवन में डालकर अंतर्ध्यान हो गए .
राजा अपने पुत्र को ढूंढने लगे और धर्मपाल को बुलाकर बोले- मेरा पुत्र कहाँ गया ? मंत्री धर्मपाल ने बोला मैं नहीं जानता की राजकुमार कहा गया ?अभी उसे सभी जगहों पर ढूढ़वाता हूँ .दूतो ने चारो ओर तलाश किया परन्तु राजकुमार का पता नहीं चला .पता नही चलने पर राजा ने मंत्री धर्मपाल को बुलाया और बोले दुष्ट यदि राजकुमार नही मिले तो तेरे कुल सहित तेरा बध करूंगा. धर्मपाल अपने घर गया अपनी पत्नी बंधू-बांधवों को राजा का फरमान सुनाया-विलाप करने लगा की अब हमारे कुल में कोई नही बचेगा राजा सब का बध कर देगें अब मैं क्या करूं मेरे कुटुम्ब-परिवार की रक्षा कौन करेगा ?
उनके ऐसे वचन सुनकर छोटी बहु बोली—पिता जी !आप इतने दू:खी क्यों हो रहे हो ?यह हमारे ऊपर गणेश जी का कोप हैं इसलिए आप विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत-पूजन करें तो अवश्य पुत्र (राजकुमार) मिल जायेगा .इस व्रत को करने से सारे संकट दूर होते है,यह संकटनाशी व्रत हैं .
मंत्री धर्मपाल ने राजा को यह बात बताई राजा ने प्रजा के साथ श्रध्दा-पूर्वक चैत्र-कृष्ण चतुर्थी को श्री गणेश का संकटनाशी व्रत किया जिसके फल-स्वरूप श्री गणेश जी प्रसन्न हो सब लोगो को देखते-देखते राजकुमार को प्रकट कर दिया . इस लोक में सभी व्रतों में इससे बढ़कर अन्य कोई व्रत नहीं हैं .

फाल्गुन गणेश चौथ व्रत कथा


पूर्व काल में रंतिदेव के राज्य में धर्मकेतु नाम का ब्राह्मण रहता था, इसकी सुशीला और चंचलता नाम की दो पत्नीयां थी . सुशीला धर्म परायण थी तथा व्रत उधापन किया करती थी .चंचलता कभी कोई न व्रत करती थी और ना श्रृंगारादि करके शारीर को सुन्दर रखती थी . सुशीला को सुन्दर कन्या और चंचलता को पुत्र पैदा हुआ . चंचलता सुशीला से बोली तूने व्रतोपवास में शारीर सुखा दिया और बेटी पैदा की, देख मैं कभी व्रतादि नहीं करती परन्तु फिर भी पुत्र पैदा किया .
अपनी सौत के बचन सुनकर सुशीला बहुत दु:खी हुई और भक्तिपूर्वक गणेश जी की आराधना करने लगी . व्रत से प्रसन्न हो गणेश जी स्वप्न में दर्शन देते हुए बोले –हे सुशीला ! मैं तेरी पूजा से प्रसन्न हूँ तेरी कन्या के मुंह से सदा मोती मुंगे गिरा करेगें तथा सुन्दर विद्दान पुत्र तुझे प्राप्त होगा . कन्या के मुंह से मोती मुंगे निकलने लगे एवं पुत्र भी प्राप्त हो गया .
धर्मकेतु की मृत्यु के बाद चंचलता अपने पुत्र एवं सारा धन लेकर अलग हो गई . सुशीला अपने पुत्र और कन्या का पालन करने लगी और कुछ ही समय में धनवान हो गई . उसकी संपत्ति को देखकर चंचलता जलने लगी और सुशीला की कन्या को कुएं में डाल दिया पर परन्तु गणेश जी की कृपा से कन्या का बल भी बांका नहीं हुआ . कन्या को घर आया देखकर चंचलता सुशीला के पैंरो में गिर पड़ी और बोली बहन ! मुझे तुम क्षमा करो तुम दयालु हो तुमने दोनों कुलों को तार दिया . जिसकी गणेश रक्षा करते हैं मनुष्य उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता |

ज्येष्ठ गणेश चौथ व्रत कथा 


पूर्वकाल में पृथु के राज्य में एक जयदेव नाम का ब्राहमण रहता था, उसके चार बेटे थे . उसने वैदिक विधि से उनका विवाह कर दिया . सबसे बड़ी बहु अपने सास से बोली माता जी ! जबसे व्रत करने योग्य हुई हूँ ,संकट नाशक गणेश चौथ का व्रत करती चली आ रही हूँ ,मुझे आज्ञा दें कि मैं इस व्रत को आगे भी करू . पुत्र-वधु के वचन सुनकर ससुर बोला –बहु तुम्हे किस बात का दुःख है जिसके लिए व्रत करोगी ?तुम खूब खाओ पियो और आराम से अपने सुख को भोगों पुत्र-वधु ने भी ऐसा ही किया वे आराम से सुख से रहने लगी.
 कुछ समय बाद पुत्र की प्राप्ति हुई समय बितता गया पुत्र भी विवाह के योग्य हो गया गणेश व्रत छूटे काफी समय हो गया ,गणेश देव रुष्ट हो गए . बेटे के विवाह में सुमंगली के समय गणेश जी ने पुत्र का हरण कर लिया तब बड़ा ही हाहाकार मचा .माँ ने जब अपने बेटे के हरण का समाचार सुना तो वह रोने लगी और ससुर से बोली आपने गणेश चौथ व्रत छुड़ा दिया इससे मेरा पुत्र लोप हो गया .जयदेव भी बहुत दु:खी हुआ अब पुत्र-वधु फिर से गणेश जी की प्रार्थना कर व्रत करने लगीं .
एक समय गणेश जी दुर्बल ब्राह्मण का रूप धारण करके वह आये और बोले बेटी – क्षुधा की शांति के लिए भिक्षा दें . जयदेव बेटे की बहु ने अत्यन्त प्रसन्नता के साथ ब्राहमण का पूजन कर भोजन कराया . ब्राह्मण-रूपधारी गणेश जी बोले – कल्याणी! मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ वर मांगो जयदेव की पौत्र-वधु बोली हे विघ्नेश्वर ! आप प्रसन्न हैं तो मेरा पति मुझे प्राप्त हो . तेरा वचन सत्य होगा और अंतर्ध्यान हो गए . कुछ समय बाद वह बालक घर आ गया . सभी बहुत प्रसन्न हुए  , विधि अनुसार विवाह कार्य सम्पन्न किया . ज्येष्ठ मास की चौथ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं .

आषाढ़ गणेश चौथ व्रत कथा


पूर्वकाल में माहिष्मती नगरी में महीजित नाम का धर्मात्मा राजा था ,उसके कोई पुत्र नहीं था . रात दिन पुत्र की चिन्ता में रहता ,पुत्र प्राप्ति के लिए दान पुण्य किया परन्तु पुत्र नहीं हुआ .राजा ने अपने राज्य के ब्राहमणों तथा प्रजा जनों को बुलाया और उनसे पुछा –हे ब्राह्मणों और प्रजाजनों !मैंने धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया . देव और ब्राहमणों की पूजा की . धैर्यपूर्वक अपने सारे कर्तव्यो का पालन किया , परन्तु मेरे सन्तान नहीं हैं , इसका क्या कारण हैं ?
सभी ने बहुत सोच विचार कर रजा के साथ  वन में जाकर लोमेश मुनि से मिलकर इस समस्या का समाधान पूछना  उचित समझा.  ऋषि बोले – हे ब्राह्मणों ! राजा यदि भक्ति से संकटों के विनाशक श्री गणेश चौथ का व्रत करें . आषाढ़ मास में लम्बोदर का पूजन विधि पूर्वक करें तो सन्तान प्राप्ति होगी.
राजा ने सभी ब्राह्मणों और प्रजाजनों को सत्कार कर विदा किया और भक्तिपूर्वक गणेश चौथ का व्रत करने लगा . श्री गणेश की कृपा से सुद्क्षिणा रानी के गर्भाधान हुआ और दसवें मास सुन्दर पुत्र पैदा हुआ . राजा ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया ब्राह्मणों तथा याचकों को बहुत सा धन दिया . श्री गणेश का ऐसा ही प्रभाव हैं . जो व्यक्ति भक्ति पूर्वक श्री गणेश का व्रत करता है उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं . इस लिए सभी को इस व्रत को करना चाहिए

श्रावण गणेश चौथ व्रत कथा 


पूर्वकाल में हिमाचल पुत्री पार्वती ने शिवजी को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए कठोर ताप किया परन्तु शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तब पार्वतीजी ने अनादि काल से विधमान गणेश का ध्यान किया तब गणेश जी आये .उन्हें देखकर पार्वती जी बोली-शिव के लिए मैंने महान तप किया ,परन्तु शिव प्रसन्न नहीं हुए . हे विघ्नाशक ! नारद द्दारा बताये हुए व्रत के विधान को मुझसे कहिए .श्री गणेश बोले हे माता ! श्रावण कृष्ण चौथ के दिन निराहार रह कर मेरा व्रत करे और चन्द्रोदय के समय मेरी पूजा करें .
षोडश उपचारादी से पूजन करके पन्द्रह लड्डू बनावें .सर्वप्रथम भगवान को लड्डू अर्पित करके उनमें से पांच लड्डू दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दे . पांच लड्डू अर्घ देकर चन्द्रमा को अर्पण करे और पांच लड्डू स्वयं भोजन करे .यदि इतनी शक्ति न हो तो सामर्थ के अनुसार करें , भोग लगा कर दही के साथ भोजन करें .प्रार्थना कर गणेश का विसर्जन करें , गुरु ब्राह्मण को वस्त्र दक्षिणा अन्न आदि दें . इस प्रकार जीवन पर्यन्त वर्ष भर इस व्रत को करें .
एक वर्ष पूर्ण होने पर श्रावण कृष्ण चौथ का उद्यापन करें . उद्यापन में एक सौ आठ लड्डू का हवन करें . केले का मंडप बनावें पत्नी के साथ आचार्य को शक्ति के अनुसार दक्षिणा दे . पार्वती जी ने व्रत किया और शंकरजी को पति रूप में प्राप्त किया . पूर्वकाल में इस व्रत को राज्य को प्राप्त करने के लिए युधिष्ठर ने किया था . धर्म, अर्थ और  मोक्ष को देने वाला यह व्रत हैं .

भाद्रपद गणेश चौथ व्रत कथा


पूर्वकाल में राजाओं में श्रेष्ठ राजा नल था उसकी रूपवती रानी का नाम दमयन्ती था .शाप वश राजा नल को राज्यच्युत होना पड़ा और रानी के वियोग से कष्ट सहना पड़ा . तब दमयन्ती ने इस व्रत के प्रभाव से अपने पति को प्राप्त किया . राजा  नल नल के ऊपर  विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था. डाकुओं ने उनके महल से धन, गजशाला से हाथी और  घुड़शाला से घोड़े हरण कर लिये , तथा महल को अग्नि से जला दिया . राजा नल भी जुआ खेलकर सब हार गये .
नल असहाय होकर रानी के साथ वन को चले गए . शाप वश स्त्री से भी वियोग हो गया कहीं राजा और कहीं रानी दु:खी होकर देशाटन करने लगे . एक समय वन में दमयन्ती को महर्षि शरभंग के दर्शन हुए . दमयन्ती ने मुनि को हाथ जोड़ नमस्कार किया और प्रार्थना कि प्रभु ! मैं अपने पति से किस प्रकार मिलूंगी ? शरभंग मुनि बोले –दमयन्ती ! भादों की चौथ को एकदन्त गजानन की पूजा करनी चाहिए . तुम भक्ति और श्रद्धापूर्वक गणेश चौथ का व्रत करो तुम्हारे स्वामि तुम्हें मिल जाएंगे .
शरभंग मुनि के कहने पर दमयन्ती ने भादों की गणेश चौथ को व्रत आरम्भ किया और सात मास में ही अपने पुत्र और पति को प्राप्त किया . इस व्रत के प्रभाव से नल ने सभी सुख प्राप्त किये .विघ्न का नाश करने वाला तथा सुखा देने वाला यह सर्वोतम व्रत है  .

आश्विन गणेश चौथ व्रत कथा 

आश्विन में कृष्ण नामक गणेश जी का पूजन तथा विधिपूर्वक व्रत करना चाहिए . व्रती को इस दिन क्रोध, भोजन, लोभ, पाखण्ड को त्याग कर गणेश का ध्यान करना चाहिए . इस दिन दूब तथा हल्दी को मिलाकर हवन करें .
एक समय बाणासुर की कन्या उषा ने स्वप्न में अनिरुद्ध को देखा .जागने पर उषा को बहुत दुःख  हुआ तब चित्रलेखा ने सहेली को तीन लोक तथा चौदह भवनों के प्राणियों के चित्र बनाकर दिखाए . अनिरुद्ध के चित्र को देख कर उषा ने कहा कि मैंने स्वप्न में इन्हीं को देखा हैं . इनके बिना जीवित नहीं रह सकती हूँ , जहाँ भी यह  हो इन्हें ला कर दो . अपनी सखी के बचन अनुसार चित्रलेखा द्दारिका में अनिरुद्ध को पहचान कर हरण करके सायंकाल गोधूलि के समय बाणासुर के नगर में ले आई .
द्वारका में अनिरुद्ध को प्रद्दुमन आदि ने नहीं देखा तो वे बहुत ही दु:खी हुए और रुदन करने लगे . रूक्मिणी जी भी अपने नाती के वियोग में बहुत दु:खी हुई और दु:खी हो श्री कृष्ण से पूछी मेरा नाती कहाँ गया है ? यदि उसका पता नहीं चला तो मैं अपने प्राणों को त्याग दूगीं . रुक्मिणी को सांत्वना देकर श्री कृष्ण राज्य-सभा में आये और लोमश मुनि से सारा वृतान्त कहा . श्री लोमश मुनि बोले हे राजन ! गणेश का व्रत करने से आपको नाती की प्राप्ति होगी साथ ही पौत्र-वधु की भी . आप आश्विन मास की संकटा नामक चौथ का व्रत करके गणेश का पूजन करें .
श्री कृष्ण ने  वैसा ही किया जैसा श्री लोमेश मुनि ने बताया  और व्रत के प्रभाव से बाणासुर पर विजय प्राप्त कर उषा सहित अनिरुद्ध को ले आये .

कार्तिक गणेश चौथ व्रत कथा 

पूर्व में अगस्त्य नाम के ऋषि थे वे समुद्र के किनारे कठोर व्रत कर रहे थे , वहाँ से कुछ दूरी पर एक पक्षी अपने अंडो को से रहा था . उसी समय समुद्र में तूफान सी लहरे उठने लगी पानी चढ़ने लगा और पानी अपने साथ अंडो को बहा ले गया , पक्षी बहुत दू:खी हुआ और उसने प्रतिज्ञा की कि –“मैं समुद्र के जल को समाप्त कर दूंगी और अपने चोंच में सागर के जल को भर भर कर फेंकने लगी ऐसा करते करते उसे काफी समय बित गया समुद्र का जल घटा ही नही.
वह दू:खी मन से अगस्त्य मुनि के पास गई और अपनी व्यथा सुना समुद्र को सुखाने की प्रार्थना की .अगस्त्य मुनि को चिन्ता हुई कि मैं कैसे समुद्र के जल को पी कर सुखा सकूंगा , तब अगस्त्य मुनि ने गणेश जी का स्मरण किया और संकटा चतुर्थी व्रत को पूरा किया . तीन मास व्रत करने से गणेश जी प्रसन्न हो गए और मुनि का मार्ग प्रशस्त किया चौथ व्रत की कृपा से अगस्त्य मुनि ने प्रेम से समुद्र को पी कर सुखा दिया और पक्षी की प्रतिज्ञा को पूरा किया .इसी व्रत के प्रभाव से अर्जुन ने निवात-कवचादि शत्रुओं पर विजय प्राप्त की .

मार्गशीर्ष गणेश चौथ व्रत कथा 

त्रेता युग में दशरथ नाम के धर्मात्मा राजा थे एक बार वन में आखेट के समय शब्द भेदी बाण चलाये जिससे श्रवण नामक ब्राह्मण की मृत्यु हो गई श्रवण के माता-पिता नेत्र-विहीन थे . श्रवण ही एक मात्र उनका सहारा था जब राजा दशरथ ने उन्हें (श्रवण के माता पिता को) यह दुखद समाचार सुनाया वे बहुत दू:खी हुए.  शोक से उन्होंने भी  अपने प्राणों का त्याग कर दिया और राजा दशरथ को शाप दिया कि जिस प्रकार पुत्र वियोग में मैं मृत्यु को प्राप्त कर रहा हूँ उसी प्रकार पुत्र वियोग में तुम्हारी भी मृत्यु होगी.  शाप सुन कर राजा बहुतदुखी  हुए .
राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया . उसके प्रभाव से उन्हें चार पुत्र प्राप्त हुए श्री राम , लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न . पिता की आज्ञा से राम वन जानेलगे तो लक्ष्मण और सीता भी साथ हो लिए, वन में रावण ने सीता का हरण कर लिया, सीता को खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पर पहुचें वह हनुमान से मुलाकात हुई , सुग्रीव से मित्रता की .हनुमान के साथ वानर सेना सीता जी खोज करने लगी . वह वानरों ने गिद्धराज सम्पाती को देखा . सम्पाती ने उनके बारे में पुछा वनरो ने सीता हरण एवं जटायु मरण की कथा कही तो सम्पाती ने उन्हें बताया –समुद्र के पर राक्षसों की नगरी लंका है , वहा अशोक वृक्ष के नीचे  माता जानकी बैठी हुई हैं , मुझे सब कुछ दिखाई देता है , हनुमान जी इस कार्य को श्री गणेश की कृपा से जग जननी सीता को खोज सकेंगे  और क्षण भर में समुद्र के पार चले जायेंगे.
हनुमान जी ने गणेश जी का व्रत किया और क्षण भर में समुद्र को लांघ गए . माता सीता का पता चला. श्री गणेश की कृपा से श्री राम को इस युद्ध में विजय प्रप्त हुई .

पौष गणेश चौथ व्रत कथा 

एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया संध्या करते हुए बाली को पीछे से जाकर पकड़ लिया . वानरराज बाली रावण को अपनी बगल (कांख) में दबाकर किष्किन्धा नगरी ले आये और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौना दे दिया . अंगद रावण को खिलौना समझकर रस्सी से बांधकर इधर उधर घुमाते थे .
इससे रावण को बहुत कष्ट और दु:ख प्राप्त हुआ .रावण ने दु:खी मन से अपने पितामह पुलस्त्य जी को याद किया . रावण की इस दशा को देखकर पुलस्त्य ने विचारा की रावण की यह दशा क्यों हुई ? अभिमान हो जाने पर देव, मनुष्य, असुर, सभी की यही गति होती है . पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछे तुमने मुझे क्यों याद किया है ? रावण बोला- पितामह मैं बहुत दु:खी हूँ , यह नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं अब आप मेरी रक्षा करें . रावण के मुखं ऐसे वचनों को सुनकर पुलस्त्य बोले – रावण तुम डरों नहीं तुम इस बन्धन से जल्दी मुक्त होगे तुम विघ्नविनाशक गणेशजी का व्रत करो . पूर्वकाल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इंद्र ने इस व्रत को किया था . इस लिए तुम भी इस व्रत को करो
रावण ने भक्तिपूर्वक इस व्रत को किया और बन्धन रहित हो अपने राज्य को प्राप्त किया . जो भी इस व्रत को श्रद्धा-पूर्वक करता हैं उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं .

माघ संकष्टी गणेश चौथ कथा 

सतयुग में हरिश्चन्द्र नामक सत्यवादी राजा था वे साधू-सेवी व धर्मात्मा थे . उनके राज्य में कोई भी दु:खी नही था. उन्ही के राज्य में एक ऋषि शर्मा ब्राह्मण रहते थे . उनको एक पुत्र पैदा हुआ और कुछ समय बाद ब्राह्मण की मृत्यु हो गई . ब्राह्मणी दु:खी होकर भी अपने पुत्र का पालन करने लगी और गणेश चौथ का व्रत करती थी .
एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र गणेश जी की प्रतिमा को लेकर खेलने निकला . एक दुष्ट कुम्हार ने उस बालक को आवा में रखकर आग लगा दी , इधर जब लड़का घर नही आया तो ब्राह्मणी बहुत प्रेषण और चिन्ता करते हुए .गणेश जी से अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करने लगी और कहने लगी- अनाथो के नाथ मेरी रक्षा करों . मैं आपकी शरण में हूँ . इस प्रकार रात्रि भर विलाप करती रही . प्रात: काल कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों देखने के लिए आया तो देखा बालक वैसे ही हैं .आवा में जंघा तक पानी भर गया हैं .
इस घटना से हतप्रद कुम्हार ने राजा के पास जा कर सारे वृतान्त सुनाए और बोला मुझसे अनर्थ हो गया मैंने अनर्थ किया हैं , मैं दण्ड का भागी हूँ मुझे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए महराज ! मैंने अपनी कन्या के विवाह के लिए बर्तनों का आवा लगाया था पर बर्तन न पके . मुझे एक टोटका जानने वाले ने बताया कि बालक की बलि देने से आवा पाक जाएगा मैं इस बालक की बलि दी पर अब आवा में जल भर रहा है और बालक खेल रहा हैं .
उसी समय ब्राह्मणी आ गई और अपने बालक को उठाकर कलेजे से लगा कर घुमने लगी राजा हरिश्चन्द्र ने उस ब्राह्मणी से पुछा ऐसा चमत्कार कैसे हो गया ? ऐसा कौन सा व्रत, तप करती हो या ऐसी कौन सी विधा जानती हो जिससे ये चमत्कार हुआ . ब्राह्मणी बोली –महाराज ! मैं कोई विधा नही जानती हूँ और नहीं कोई तप जानती हूँ मई सिर्फ संकट गणेश नामक चौथ व्रत करती हूँ . इस व्रत के प्रभाव से मेरा पुत्र कुशलपूर्वक हैं
इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं

फाल्गुन गणेश चौथ व्रत कथा 

सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्व राजा था . उसके राज्य में वेदपाठी धर्मात्माविष्णु शर्मा ब्राह्मण रहता था. उसके सात पुत्र थे और सभी अलग अलग रहने लगे . विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहाँ भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ . बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी .
एक दिन गणेश चौथ का व्रत करके अपनी बड़ी बहू के पास घर गया और बोला बहू आज गणेश चौथ हैं , पूजन की सामग्री इकठ्ठी कर दो . बहू बोली घर के काम  से छुट्टी नही हैं.. तुम हमेशा कुछ न कुछ लगाये रह्ते हो अभी नही कर सकते ऐसे अपमान सहते हुए अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन की सामग्री की बात कही तो उसने कहा आप दु:खी न हो मैं अभी पूजन सामाग्री लाती हूँ .
वह भिक्षा मांग करके सामान लाई ,स्वयं व अपने ससुर के लिए सामग्री इकठ्ठा कर दोनों ने भक्ति-पूर्वक विघ्ननाशक की पूजा की . छोटी बहू ने ससुर को भोजन कराया और स्वयं भूखी रह गई . आधी रात को विष्णु शर्मा को उल्टी होने लगी , दस्त होने लगे . उसने अपने ससुर के हाथ पांव धोये . साड़ी रात  दु:खी रही और जागरण करती रही .प्रात:काल हो गया . श्री गणेश की कृपा से ससुर की तबियत ठीक हो गई और घर में चारो ओर धन ही धन दिखाई देने लगा जब और बहुओ ने छोटी बहू का धन देखा तो उन्हें बड़ा दु:ख हुआ उन्हें अपनी गलती का भान हुआ वे भी क्षमा मागते हुए गणेश व्रत की और वे भी सपन्न हो गई .
इस प्रकार श्री गणेश चौथ व्रत कर अपने सभी मनोरथ पूर्ण करें .

Satya Narayan vrat katha (Hindi)


Satya Narayan vrat katha (Hindi)