॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्॥ - Ram Raksha Stotra - YouTube
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श्रीरामरक्षास्तोत्रम्॥
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श्रीगणेशायनम:।
अस्य
श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य।
बुधकौशिक ऋषि:।
श्रीसीतारामचंद्रो
देवता।
अनुष्टुप् छन्द:।
सीता शक्ति:।
श्रीमद्हनुमान्
कीलकम्।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे
जपे विनियोग:॥
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॥ अथ ध्यानम्॥
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ध्यायेदाजानुबाहुं
धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासो वसानं
नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥
वामाङ्कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं
रामचन्द्रम्॥
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॥ इति ध्यानम्॥
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चरितं रघुनाथस्य
शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां
महापातकनाशनम्॥१॥
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ध्यात्वा
नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं
जटामुकुटमण्डितम्॥२॥
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सासितूणधनुर्बाणपाणिं
नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं
विभुम्॥३॥
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रामरक्षां
पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज:॥४॥
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कौसल्येयो दृशौ पातु
विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता
मुखं सौमित्रिवत्सल:॥५॥
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जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवन्दित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ
भग्नेशकार्मुक:॥६॥
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करौ सीतापति: पातु हृदयं
जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी
नाभिं जाम्बवदाश्रय:॥७॥
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सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी
हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघूत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्॥८॥
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जानुनी सेतुकृत्पातु
जङ्घे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु:॥९॥
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एतां रामबलोपेतां
रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी
विनयी भवेत्॥१०॥
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पाताल-भूतल-व्योम-चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि
शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:॥११॥
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रामेति रामभद्रेति
रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै: भुक्तिं मुक्तिं च
विन्दति॥१२॥
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जगज्जेत्रैकमन्त्रेण
रामनाम्नाऽभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य
करस्था: सर्वसिद्धय:॥१३॥
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वज्रपञ्जरनामेदं यो
रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते
जयमङ्गलम्॥१४॥
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आदिष्टवान् यथा
स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:॥१५॥
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आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां
राम: श्रीमान् स न: प्रभु:॥१६॥
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तरुणौ रूपसम्पन्नौ
सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ
चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥१७॥
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फलमूलशिनौ दान्तौ
तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ
भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥१८॥
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शरण्यौ सर्वसत्वानां
श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ
त्रायेतां नो रघूत्तमौ॥१९॥
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आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा
वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ।
रक्षणाय मम
रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम्॥२०॥
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संनद्ध: कवची खड्गी
चापबाणधरो युवा।
गच्छन् मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:॥२१॥
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रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो
बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम:॥२२॥
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वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम:॥२३॥
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इत्येतानि
जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं
सम्प्राप्नोति न संशय:॥२४॥
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रामं दूर्वादलश्यामं
पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति
नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:॥२५॥
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रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं
सीतापतिं सुंदरं ।
काकुत्स्थं
करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्।
राजेन्द्रं सत्यसन्धं
दशरथ-तनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं ।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं
राघवं रावणारिम्॥२६॥
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रामाय रामभद्राय
रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय
सीताया: पतये नम:॥२७॥
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श्रीराम राम रघुनन्दन
राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज
राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश
राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव
राम राम॥२८॥
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श्रीरामचन्द्रचरणौ
मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ
वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ
शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ
शरणं प्रपद्ये॥२९॥
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माता रामो मत्पिता
रामचन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा
रामचन्द्र:।
सर्वस्वं मे
रामचन्द्रो दयालुर्।
नान्यं जाने नैव जाने
न जाने॥३०॥
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दक्षिणे लक्ष्मणो
यस्य वामे च जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य
तं वन्दे रघुनन्दनम्॥३१॥
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लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं
करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥३२॥
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मनोजवं
मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥३३॥
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कूजन्तं राम-रामेति मधुरं
मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां
वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥३४॥
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आपदामपहर्तारं दातारं
सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं
भूयो भूयो नमाम्यहम्॥३५॥
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भर्जनं भवबीजानामर्जनं
सुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां
रामरामेति गर्जनम्॥३६॥
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रामो राजमणि: सदा विजयते रामं
रमेशं भजे।
रामेणाभिहता
निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं
परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम
मामुद्धर॥३७॥
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राम रामेति रामेति
रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं
रामनाम वरानने॥३८॥
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इति
श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
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॥ श्री
सीतारामचन्द्रार्पणमस्तु॥
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